जय बजरंग
तेरी शक्ति मेरे संग - 3॥धृ.॥
यदि कहे आप तो
रहूँगा रहूँगा
मैं भी जंगल में रहूँगा
खाऊँगा खाऊँगा
फल कंदमूल ही खाऊँगा
जिऊँगा जिऊँगा
जंगली होकरही जिऊँगा
कहे कहे,
चाहे कोई मुझे जंगली कहे॥1॥
यदि कहे आप तो
होऊँगा होऊँगा
रामदास भी होऊँगा
रहूँगा रहूँगा
उदास कभी ना रहूँगा॥2॥
सम्हालॅूंगा सम्हालॅुंगा
बह्मचर्य भी सम्हालॅूंगा
भुलॅूंगा ना भुलॅूंगा
कसरत की विरासत को
नही भुलॅूंगा॥3॥
पीढी हर पीढी मेरी
गिरती ही जा रही है।
महिमा तंदुरुस्ती की तेरी
भूलती जा रही है
गदा अपनी हाथ की
प्रतीक है प्रतिकार की
हाथ में मेरे
कब देते कब देते ॥4॥
इसीलिए मैंने झुका दिया माथा
गा रहा था आप की गाथा
कर दया हम पर हे दीनानाथा,
तू ही है अब एक मात्र त्राता॥5॥
बजरंग उवाच
खोजी, खोजी, अरे स्वास्थ्य के खोजी
मेरी शक्ति तेरे संग, तेरे संग ॥धृ.॥
अरे स्थिर-अस्थिर क्या कहते हो
परेशान सदा क्यों रहते हो
स्थिरता ही है कामयाबी
मौनी होना ही है आजादी
सुनो, सुनो, दो कान खोलकर
खोजी खोजी ... ॥1॥
अरे बंधन बंधन क्या कहते हो।
बंधन मन का बंधन है।
कर साहस झटका दो।
बंधन क्षण के बंधन हैं।
खोजी खोजी ... ॥2॥
अरे बित गया सो बित गया वह
उसकी अब चर्चा छोडो
कर्म कर आज निष्ठाओं से
मधूर सपने कल के जोडो ॥3॥
अरे जीवन है नदियाँ की धारा
जब चाहे मूड सकती है।
नरक लोक से स्वर्ग लोक से
जब चाहे जुड सकती हैं ॥4॥
अरे स्वर्ग-नरक में अंतर कितना
सफाई गंदगी में अंतर जितना
कर चल मन की सफाई
मौनों से, ध्यानों से ॥5॥
अरे खोजी कुछ भी नहीं
असंभव जग में
कार्य हेतू यदि कमर बांध लो
तो कबर भी दूर हो सकती है॥6॥
अरे तू तो सूरज है पगले
फिर क्या अंधकार से डरते हो
तू तो अपनी एक किरण से
जग प्रदीप्त कर सकते हो॥7॥
अंदर जगत में तेरे
शिवाम्बू की पावन गंगा
जब तक वह बहती है
रोग माल की कलुषित रेखा
क्षणक्षण ना रहती है॥8॥
अरे छोटे, छोटे तुम क्षुद्र रोग पर
लडकर गोली दवा से
खुद को खुद ही खोया है॥9॥
पात्रता तेरी देखकर ही
कुदरत ने तन तुझे दिया
तूने मनुष्य जन्म माँग लिया
मद्य मटन चाय में,
ये जिव्हा लंपट होकर
ये तूने ... क्या किया - 3 ॥10॥
जाती धर्म के क्षुद्र अहंपर
लढना केवल पशुता है
जहाँ नहीं माधुर्य भाव हो
कहाँ वहाँ मानवता है ॥11॥
मंगल ही मंगल पाता है।
जलते नित्य दीप से दीप
जो जगत में दीप बनेगा
उनके नहीं बुझेंगे दीप॥12॥
मंगल ही मंगल पाता है।
जलते नित्य दीप से दीप
जो जगत में दीप बनेगा
उनके नहीं बुझेंगे दीप ॥13॥
इलाज न बाहर अस्पतालों में
एक्स-रे रिपोर्ट इन अवडम्बर में
वह तो अंदर अंदर ठिबक रहा हैमंगल ही मंगल पाता है।
जलते नित्य दीप से दीप
जो जगत में दीप बनेगा
उनके नहीं बुझेंगे दीप॥14॥
इलाज न बाहर अस्पतालों में
एक्स-रे रिपोर्ट इन अवडम्बर में
वह तो अंदर अंदर ठिबक रहा है
अमृत होकर मूत्र स्वरों में॥15॥
यह भी अच्छा, वह भी अच्छा।
अच्छा जितना, सब मिल जाए।
हर मानव की यही तमन्ना
किंतु प्राप्ती का कोई मर्म न जाने॥16॥
अच्छा पाना है तो पहले
खुद को अच्छा क्यूँ न बना ले
जो जैसा उसको वैसा मिलता
यह निज मंत्र बना ले॥17॥
परिवर्तन से क्या घबराना
परिवर्तन ही जीवन है।
धूप-छाँव के उलट फेरे में
हम सब का शक्ति परीक्षण है॥18॥
स्वास्थ्य हृदय की दिव्य ज्योती है।
सावधान बुझ न पाए
काम क्रोध मद लोभ अहंम के
अंधकार में डुब न जाए ॥19॥
एक जाती हो, एक राष्ट्र हो,
एक धर्म हो, इस धरती पर
मानवता की अक्षर ज्योती
जगे जगे, जन जन घर घर॥20॥